Sunday, December 19, 2010

मयकशी

खा के कसम मयकशी छोड़ दी,
ये कब मुझे छोड़ती है देखें ।

मय से मोहब्बत नहीं थी इतनी
बस रंग से दिल लगा लिया था,
छलकते मयकदे को,
छलकने से बचा लिया था,
रिन्दों ने थामा बैठा लिया,
साक़ी के हाथों चढ़ा दिया,
ये कब मुझे छोड़ती है देखें ।

इस सुरूर से ज़रा सा इश्क तो ज़रूर है
सब कहते हैं मगर,
साक़ी की आँख का न कोई कुसूर है
हर पैमाने पर नज़र रखती है
होठों पर लगे तो साँसों में आंच आती है
ये कब मुझे छोड़ती है देखें ।

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