कई दफ़ा पहले ये हाथ मिलाता था,
इस बार जो गुज़रा, वक़्त अजनबी सा गुज़रा है ।
साथ बैठ दो बात न बोली,
न सुनी, न सुनाई,
बस खुदगर्ज़, मतलबी सा गुज़रा है ।
जाएगा कहाँ, वास्ता तो पड़ेगा ही,
इस राह में, रास्ता तो पड़ेगा ही,
तरस खा कर पहचान लूँगा,
जैसे यहीं था, बस अभी सा गुज़रा है ।
1 comment:
I like :-)
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