Friday, March 26, 2010

हर शेहर

हर शेहर किताब सा लगता है
स्याही दर्ज है पन्नों पर ।

नुक्कड़ों पर अंक लिखे हैं,
इंसान अक्षर बन बिखरे पड़े रहते हैं,
जो बोलें वो, शेहर वही कहते हैं,
आज एक काग़ज़ लगा कर यहीं तक बंद कर दिया,
फिर आऊँगा तो नए पन्ने जुड़े होंगे शायद ।

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