Wednesday, January 6, 2010

अमन की आशा

नज़र में रहते हो जब तुम नज़र नहीं आते
ये सुर बुलाते हैं जब तुम इधर नहीं आते

गुरूर रोकेगा फिर से... फिर भी
अड़ा रहेगा अबके जिद्द पर ये दिल भी
थमे रहेंगे अश्क आँखों में
धुंधला कर देंगे फासला
इश्क के लिए काफी है इश्क ही
नहीं लगता हौंसला
न राह देखते, न आवाज़ लगाते,
सालों पहले तन्हा कर, तुम अगर नहीं जाते।
ये सुर बुलाते हैं जब तुम इधर नहीं आते

फिर कागज़ पर दायें से बांयें लिखे कोई,
फिर कांच की सुरमेदानी पर धूप पड़े,
फिर छतें टाप कर, सरहद पार करें,
चूड़ियों पर लिपटे काग़ज़ में ग़ालिब का कलाम दिखे कोई
गोलियों से बने दीवारों पर छेद, तस्वीरों में नज़र आते हैं,
उनमें भर कर आटा, अगरबत्ती लगाए कोई,
गुज़र गए हैं जो पल वो क्यूँ गुज़र नहीं जाते
ये
सुर बुलाते हैं जब तुम इधर नहीं आते।

छालिए के छोटे संदूक की हिफाज़त करे कोई,
फिर अपने छालों पर कत्था मले कोई,
फिर सात मात्रा में ग़ज़ल हो,
फिर खाने में खट्टी दाल कल हो,
फिर केसरी गरम दूध के गिलास से,
जाड़ों में हाथ गरम करे कोई,
खजूर, काजू, बादाम का नाश्ता किया,
गर्म अंगूर भी खूब खाए,
कटोरी भर पानी में कत्था भिगोये बैठे हैं,
कमबख्त छाले मगर नहीं आते,
ये सुर बुलाते हैं जब तुम इधर नहीं आते।

पूछते हैं लोग किसका ज्यादा फ़ायदा है,
कमाल है ये मोहब्बत,
नफा, नुक्सान है, क़ायदा है
खैर अब मोहब्बत रही कहाँ,
पर कुछ तो है,
हम उनके, वो हमारे ख्यालों में तो रहते हैं,
हम उनकी, वो हमारी भाषा भी कहते हैं
पर कुछ तो है,
तो इश्क ही नाम दे दो,
गुरूर कहता है, हम कदम बढायें, तो वो भी बढायें,
पर फ़ासला किसी एक के बढ़ने से भी तो तय होगा
हम में और उन में फर्क नहीं है,
कहते हैं तो बहेस होती है,
फर्क है मान कर ही चलो, हाथ बढाए कोई,
फायों से इत्र अब उड़ चला,
इसकी महक को समझे उसके बजाये कोई,
हमारी समझ में वैसे भी ये इतर नहीं आते,
ये सुर बुलाते हैं जब तुम इधर नहीं आते।

2 comments:

Anonymous said...

I inclination not acquiesce in on it. I over polite post. Especially the title attracted me to read the sound story.

Smruti said...

गुज़र गए हैं जो पल वो क्यूँ गुज़र नहीं जाते.. wonderful :-)