Tuesday, August 25, 2009

कलम

इस बार कलम उठेगी तो

सर कलम हो जायेंगे,
हौंसले सो जायेंगे,
सारे प्रयत्न खो जायेंगे,
दबे पाँव न चलेगी अब ये,
स्याही सी न गलेगी अब ये,
उजले कागज़ पर बार बार
वार वार सा करेगी अब ये,
जड़मति सी रेंगी है,
नया पाठ एक पढेगी अब ये,
तलवार से सच मुच लडेगी अब ये
इस बार कलम उठेगी तो

अखाडों की कसरत रंग लाएगी,
हजारों की हसरत रंग लाएगी,
खूब पिलाई है नीली स्याही,
लिखने से की है सख्त मनाही,
तरसी है सुनने को वाह-वाही,
इस बार जो महफिल सजेगी तो,
इस बार कलम उठेगी तो,

इस पर ऊँगली उठेगी तो,
दुखती रग फिर दुखेगी तो
बिन स्याही कहानी रुकेगी तो,
सच के आगे झुकेगी तो
इस बार कलम उठेगी तो

1 comment:

Swati Sapna said...

VEry nice! And I understood it easily too :) YOu think the overdose of writing in the past couple of weeks has inspired this? :D