9GB Zindagi
शायर को उम्र से यूँ भी क्या चाहिए? इश्क़, ग़ुरूर और मजाल काफ़ी है
Sunday, August 17, 2008
उम्र
उम्र जलवों में बसर हो, ये ज़रूरी तो नही,
सबकी आहों में असर हो, ये ज़रूरी तो नही ।
कायदा बरता है हमने फुरकत में भी,
पर हर हुक्म की ख़बर हो, ये ज़रूरी तो नही ।
परस्तिश कैद है बुतखानों में,
खुदा काबू में मगर हो, ये ज़रूरी तो नही ।
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