Sunday, August 3, 2008

तगफ़ुल

तगफ़ुल करना फ़ितरत में तो नही,
पर आज तगफ़ुल करना होगा ।

उन आंखों में रंज ज़्यादा था,
इतने रंज का इल्म हमें न था,
लफ्ज़ ख़बीदा थे,
मायूस थे, आबीदा थे ।
अश्क़ दीवाने थे,
बस अभी बह जाने थे,
इस दिल को ख्वाहिशों से,
उन ख्वाहिशों को दिल से डरना होगा,
तगफ़ुल करना फ़ितरत में तो नही,
पर आज तगफ़ुल करना होगा ।

रंजिशों पे बंदिशें लगी,
काफ़ी तब्दीली थी हरक़त में,
एक मिस्रा निकलेगा वस्ल में,
कई निकलेंगे फ़ुर्कत में,
ऐसा होता है अकीदत में,
या कदम रखा है वहशत में ?
इक्थियार पर एक अशआर करना होगा,
तगफ़ुल करना फितरत में तो नही,
पर आज तगफ़ुल करना होगा ।

एक ही अफ़सोस है,
उन्स फिरदौस है,
ये भी ख़बर है,
अभी आयतों में असर है,
पर शायद इस तगफ़ुल का अंजाम मुक्कद्दर का मरना होगा,
नूर-ऐ-उल्फत-ऐ ख़ुदा अंधेरों से डरना होगा,
उन आंखों का रंज रूह में है,
इस दिल के ग़म का क्या वरना होगा,
क्यूंकि तगफ़ुल करना फितरत में तो नही,
पर आज तगफ़ुल करना होगा ।

तमाम तगफ़ुल तमाम हो ।

1 comment:

Mojo said...

samajh nahi aaya bhaiya. Bouncer tha :(