Sunday, February 2, 2014

रख ली

कुछ इस तरह हमने हालात से यारी रख ली
उधारी कर ली किराने की दुकान से
सर के बाल जाने लगे तो दाढ़ी रख ली

देखा तो होगा उसने मुड़ के इक दफ़ा क्या पता
हमने तो अपनी ऐनक उतारी, रख ली

हर मर्ज़ की दवा हुआ करती है आजकल
सबसे छुपाके मगर हमने एक बीमारी रख ली

क्या मसर्रत का सौदा अदा किया ज़माने को
सामान तमाम चुका कर, ख़ाली अलमारी रख ली

फ़र्क़ आता गया तुमसे हमारे वजूद में
तुम्हें सौंप कर उम्र तुम्हारी रख ली

ये चेहरे की रौनक क्यूँ मायूस है
ये किस ग़म से तुमने यारी रख ली

 बाज़ी बाज़ी में फ़र्क़ होता है
जितनी भी हमने हारी रख ली

क्यूँ आईना दिखाते है इक दूसरे को हम
कब किसने किसकी शक्ल उतारी रख ली

तेरे नाम की लक़ीर तो होगी इस हाथ में
क्यूँ हथेली पर हमने दुनियादारी रख ली

इश्क़ की मारी रही दर-ब-दर
पीरों ने क़िस्मत की मारी रख ली

चाँद अकेला कर गए तुम
मेरी रातें सितारी रख ली

 ये तबाह रातें न-ख़ुश रहती हैं मुझसे
जितनी तुमने संवारी, तुमने रख ली













2 comments:

Garima said...

It is your best so far. I am mindblown. Har Misra ek se badke ek hai! Umr tumhari Rakh li mein umr ka uss jagah pe use...ya kisne kiski shakl utari rakhli ka thought...it's stupendous, this poem. Should be included in textbooks. I mran it. True example of great great writing.mindblown!

Garima said...
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