Sunday, November 27, 2011

1GB

1GB बढ़ गया हूँ मैं।

ग़म, मलाल, मजाल, ग़ुरूर, के साथ साथ
थोड़ी सी जगह मसर्रत को भी मिल जायेगी ।
इस दुनिया के हिसाब से,
अब इस दुनिया को बेहतर समझूंगा मैं
सबसे ऊंचे "एक-आंकड़े" पर आकर अड़ गया हूँ मैं ।
उम्र घटती नहीं,
ज़िन्दगी बढ़ जाती है
बनते बनते इसकी,
एक शक्ल सी बन जाती है
फिर पसंद आये न आये ।
खूबसूरत तो होती है ।

ये उम्र हर साल नहीं बढ़ती
कई सालों में पहली बार
1GB बढ़ गया हूँ मैं ।

1 comment:

Garima said...

superlike! love the transition...such simply stated lines for such a beautiful thought :) padhne wale ko samajh hi nahi aayega ki ye "1GB" badhna khushi baat hai ya nahin! brilliant as always!! aur achha hai 'ek' se shuruaat ki hai...iske aage sirf aur sirf badhoge :)