उम्र ने तलाशी ली, तो जेबों से लम्हे बरामद हुए ।
कुछ ग़म के, कुछ नम थे, कुछ टूटे, कुछ सही सलामत हुए
ले लो... कमबख्त याद बन बैठे थे,
जेबों में धूल जमा कर, वक़्त ओढ़े बैठे थे,
महक सी कपडे पर छोड़ जायेंगे,
पुराने घटिया सिलसिले तोड़ जायेंगे,
उजली जेबों को यूँ भी रंग की आदत नहीं,
ले लो... इस से पहले के आदत हुए ।
No comments:
Post a Comment