Monday, May 5, 2008

कभी

आंखों से कभी ख्वाहिशें तो की होती,

ज़िंदगी कभी फकत लम्हों में ही जी होती


अश्कों का हिसाब तो रखा उम्र भर,

कभी मुस्कुराहटों की गिनती भी की होती.


आज फिर हवा के झोंकों ने जगा दिया,

काश उनसे इतनी दुश्मनी न ली होती.


मिटते गए निशाँ, बुझती गई आहटें,

साँसों की दीवानगी, खुदा ने इन्हें भी बख्शी होती.


उसने तो निभाई खुदाई अपनी

हमने कभी बंदगी तो की होती.


जज्बातों का सबब ही तलाशते रहे,

जज्बातों की कद्र तो की होती.


अकेले मोड़ पर अकेले खड़े, सोचा,

कभी कोई राह तो चुनी होती.


रगों से कुरेद-कुरेद, जुनूँ निकाल दिया,

काश थोडी संजीदगी बरती होती.

2 comments:

Dasbehn said...

I told you, you're a much better writer in hindi!! The poem is nice...:-)

Did gautam send you the details for the self publishing thing? He had taken your number from me.

Anonymous said...

pls stop writing in english..! it seems like a disgrace to hindi!!
i never knew u actually write so well!! LOL!