अश्क़ ज़रिया हैं ग़म नहीं
इश्क़ तो ले आया दर पे तेरे
पर जिसने रोका वो भी एहम नहीं
मर्ज़ होता तो जाँ लेता
इश्क़ है, इसका कोई मरहम नहीं
रात का सुकून वेह्शत लगता है
जैसे रात में भरते हम दम नहीं
अश्क़ आशिक़ी में बहाए इतने
के अब तुम नहीं या हम नहीं
दर्द से क्या बचेगा आशिक़
जो दर्द न दे वो सनम नहीं
अश्क़ ज़रिया हैं ग़म नहीं
एहसास है, कलम नहीं
बह निकलें तो दरिया
जो रुक जाएँ आँखों में
तो तूफां से कम नहीं
इस बार न बहें, रुके रहें
साहिलों के सर झुके रहें
नज़र से बाँध नज़र ये कह सकूँ
के दर्द तो है पर कोई ग़म नही
इश्क़ तो ले आया दर पे तेरे
पर जिसने रोका वो भी एहम नहीं
मर्ज़ होता तो जाँ लेता
इश्क़ है, इसका कोई मरहम नहीं
रात का सुकून वेह्शत लगता है
जैसे रात में भरते हम दम नहीं
अश्क़ आशिक़ी में बहाए इतने
के अब तुम नहीं या हम नहीं
दर्द से क्या बचेगा आशिक़
जो दर्द न दे वो सनम नहीं
अश्क़ ज़रिया हैं ग़म नहीं
एहसास है, कलम नहीं
बह निकलें तो दरिया
जो रुक जाएँ आँखों में
तो तूफां से कम नहीं
इस बार न बहें, रुके रहें
साहिलों के सर झुके रहें
नज़र से बाँध नज़र ये कह सकूँ
के दर्द तो है पर कोई ग़म नही
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