कैसा मैं इंसान बना
एक ऐब न मुझ में
सब सच कहता हूँ
बच बच रहता हूँ
छल से मैं
अपने हिसाब से सच मरोड़ के
कुछ भी कह जाना झूठ थोड़े ही है
अरे ज़रा से मनघडंत है, झूट थोड़े ही है
सच न कहना, झूठ थोड़े ही है
और हाँ नशा भी नहीं करता मैं
खुद से इतना खुश हूँ तो
क्यूँ भुलाऊं खुद को मैं
क्यूँ डूबूँ नशे में
क्यूँ धुंधला देखूं मैं
मुझे नशा है खुद का
ये ऐब तो नहीं
खुद से तंग नहीं आता मैं
ये ऐब तो नहीं
खुद से बेहतर दुनिया में कोई भी साथ कहाँ
जी नशा है लहू में, वो मदिरा में बात कहाँ
जो मुझको दर्द करे
मैं उसको दर्द करूँ
जो मुझसे प्रेम करे
मैं उसको दर्द करूँ
फिर रोऊँ खुद पर मैं
ये ऐब तो नहीं
बचपन से इस जग ने
येही पाठ सिखलाया है
तो मुझे किसी से मोह नहीं
मोह तो यूँ भी माया है
देखा - दो पल में कैसे
जग को दोष दे दिया
इसके नाम ही सारा
आक्रोश दे दिया
ये ऐब तो नहीं
मुझे किसी पे क्रोध नहीं
संत हूँ
भौहें नहीं चढ़ाता मैं
चुपचाप पी जाता हूँ विष सारा
मान गए न?
तो ये झूठ न रहा
तो मैंने झूठ न कहा
देखा
एक ऐब न मुझ में
बात कटु न कहता मैं
पर सच तो कटु ही होता है
तो सच कभी न कहता मैं
ये ऐब तो नहीं
ठेस कोई न पहुंचाई मैंने
कभी किसी को भूले से
पहुंचाई होती तो मुझे पता होता
है न? नहीं पता तो नहीं पहुंचाई होगी
एक ऐब न मुझ में
माफ़ आसानी से कर देता हूँ
एक ग़लती तो भगवान् भी माफ़ करते हैं न
इतना अच्छा हूँ मैं तो
सारे लगते हैं बुरे मुझे
ये ऐब तो नहीं
भला जो देखन मैं चला
भला न मिलेय कोए
जो मन खोजा आपना
मुझसे भला न कोए
एक ऐब न मुझ में
सब सच कहता हूँ
बच बच रहता हूँ
छल से मैं
अपने हिसाब से सच मरोड़ के
कुछ भी कह जाना झूठ थोड़े ही है
अरे ज़रा से मनघडंत है, झूट थोड़े ही है
सच न कहना, झूठ थोड़े ही है
और हाँ नशा भी नहीं करता मैं
खुद से इतना खुश हूँ तो
क्यूँ भुलाऊं खुद को मैं
क्यूँ डूबूँ नशे में
क्यूँ धुंधला देखूं मैं
मुझे नशा है खुद का
ये ऐब तो नहीं
खुद से तंग नहीं आता मैं
ये ऐब तो नहीं
खुद से बेहतर दुनिया में कोई भी साथ कहाँ
जी नशा है लहू में, वो मदिरा में बात कहाँ
जो मुझको दर्द करे
मैं उसको दर्द करूँ
जो मुझसे प्रेम करे
मैं उसको दर्द करूँ
फिर रोऊँ खुद पर मैं
ये ऐब तो नहीं
बचपन से इस जग ने
येही पाठ सिखलाया है
तो मुझे किसी से मोह नहीं
मोह तो यूँ भी माया है
देखा - दो पल में कैसे
जग को दोष दे दिया
इसके नाम ही सारा
आक्रोश दे दिया
ये ऐब तो नहीं
मुझे किसी पे क्रोध नहीं
संत हूँ
भौहें नहीं चढ़ाता मैं
चुपचाप पी जाता हूँ विष सारा
मान गए न?
तो ये झूठ न रहा
तो मैंने झूठ न कहा
देखा
एक ऐब न मुझ में
बात कटु न कहता मैं
पर सच तो कटु ही होता है
तो सच कभी न कहता मैं
ये ऐब तो नहीं
ठेस कोई न पहुंचाई मैंने
कभी किसी को भूले से
पहुंचाई होती तो मुझे पता होता
है न? नहीं पता तो नहीं पहुंचाई होगी
एक ऐब न मुझ में
माफ़ आसानी से कर देता हूँ
एक ग़लती तो भगवान् भी माफ़ करते हैं न
इतना अच्छा हूँ मैं तो
सारे लगते हैं बुरे मुझे
ये ऐब तो नहीं
भला जो देखन मैं चला
भला न मिलेय कोए
जो मन खोजा आपना
मुझसे भला न कोए