बगल में कुर्सी डाली है,
शुक्र है अब भी खाली है ।
लिफाफों में बंद कर,
गैर-जिम्मेदार हाथों को,
दे डाले थे नायाब लम्हे,
आज छीन लिए वापिस,
पलों की ज़िन्दगी,
पलों में ज़िन्दगी बचा ली है
जो बीत गया वो फिर नही आता
हर बात का है बहीखाता,
जो तेरा जाएगा,
वो किसी और का नही जाता,
बात तो बढेगी ही,
उम्र भर जो पाली है ।
सच है क्या? सही है क्या?
सफ़ेद रहोगे जो तुम तो,
दुनिया लगती काली है ।
बदल पड़ेंगे रंग सभी,
दुनिया फिर भी काली है,
ये गिरगिट की साली है ।
बगल में कुर्सी डाली है,
शुक्र है अब भी खाली है ।