Sunday, January 18, 2015

न नाम लिखो मज़ारों पे

हमें आदत है ज़ख़्म पालने की
ऐब सबके याद रहते हैं
जो फूल चढ़ाए अगले दिन मुरझा गए
जलियांवाले में गोलियों के निशाँ
इतने सालों बाद रहते हैं

मसला नया ये है कि
शहीद जवानों के लिए देश में स्मारक नहीं
याद उन्ही को करना जो नहीं रहे

 भगत सुखदेव अशफ़ाक़ुल्लाह
मरते न तो याद न रहते
गांधी ने भी गोली खायी
तब जाके बापू बना
वैसे तो साला Album बना के
शादी, जन्मदिन हर घर में याद करते हैं
पर मौते की ख़बरों का अखबार में ऐलान करते हैं
हिरोशिमा, कारगिल, विश्व युद्ध
पीढ़ियां पढ़ पढ़ रट लेगी
कब पोलियो का उपचार निकला
ये बताओ कब पहला विमान उड़ा?

Leopold में गोली के निशाँ
साला Tourist Spot है
कहाँ पकड़ा था क़सब को
ये भी कोई याद रखने की बात है ?

आगे बढ़ो कल की सोचो
सब ये बकते रहते हैं
हम तो कल के टट्टू हैं
हम सब कल में अटके हैं 
याद जिसे हम कहते हैं 
वो दरअसल क़ैद है

आने वाला पल है जो
उसे हरामियो आने दो
न नाम लिखो मज़ारों पे
जो चले गए उन्हें जाने दो

Wednesday, January 7, 2015

कुफ़्र

देश की मिट्टी के सीने में खोजा
तो कुफ़्र का ख़ज़ाना निकला
मंदिर के नीचे दफ़्न मज़ार मिली
मस्जिद जलाये तो बुत्तखाना निकला

Thursday, November 13, 2014

हर दर

हर दर पर से झुकाये सर चलता हूँ
जाने कौन सा दर उसका घर निकले

Sunday, June 15, 2014

कल घर से निकला तो था मंदिर जाने को
रास्ते में देखा मस्जिद Lights से सजी है
बस तो मस्जिद की गली मुड़ गया

Tuesday, April 29, 2014

जंग जारी है।

AC की wires जहाँ से निकलती हैं
२ चिड़ियों ने उस में घर बनाने कि कोशिश की


अभी अभी नयी कबूतर जाली लगवायी थीं
पर साली छोटी चिड़िया ने जुगाड़ बेठा लिया
Pipe का Thermocol  लिबास नोच फैंका
और हर सुबह जुट गयी

यार जाली का क्या फ़ायदा हुआ ?

मैंने बहुत भगाने की कोशिश की
माना की कबूतरों कि जनसँख्या बहुत बड गइ है
और वो चिड़ियों के घोंसलों में घुस गये हैं
पर इसका मतलब ये तो नहीं की चिड़िया
हमारे घर में घुस जाए
यही सोच के मैने काम कर दिया

Plastic की थैलियाँ भर दी उस Hole में

आज सुबह जाली के बाहर बैठीं थी
मुझसे आँख मिलायी और बोली
जा बे!
अगर दो दिन में
Plastic की थैलियों का भरता न कर दिया तो कह्ना

जंग जारी है।

Tuesday, February 11, 2014

शायरी में लखनऊ

मजाज़ का अल्हड़पन
'मीर'-गी का जुनूँ आ गया है
शायरी में ज़रा सा लखनऊ आ गया है

देखकर मुझे पत्थर उठा लेते हैं ये
क़ाफ़िर कहाँ से रेख़ते का मजनू आ गया है

ये रेलें क्यूँ ऐसे लखनऊ से दौड़ती फिरती हैं
क्या इनमें भी 'मीर' का लहू आ गया है

कभू न मिलाना ख़ुद को मीर से
मीर न हो गए जो कब की जगह कभू आ गया

ता-ज़ीस्त यार की फ़िराक़ में रहे
यूँ बेदम हुए के वो यूँ आ गया

हिन्दवी में लिखने गए तो कलम रूकती रही
आवारा हाल-ए-ग़म उर्दू में हू-ब-हू आ गया

चिकन से यूँ सराबोर हैं ये गलियां जैसे
सूखी नमाज़ में वज़ू आ गया

दैर-औ-हरम की महफ़िलें नाराज़ रहीं
सीने में मजलिस लिए
कहाँ से ये इश्क़-ए-मजरूह आ गया

क़ीमत लगी

हर बार ज़माने ने मेरे अश्क़ पोंछे
ख़ुशी से हमेशा बढ़कर
मेरे अश्क़ों की क़ीमत लगी

बाद मेरे जाने के पहचानोगे मुझे
जाने से पहले कितनी मुसीबत लगी

दिल में बारादरी बना रखी थी उसके लिए
जिसे दरीचे में आने को भी आफ़त लगी

चलो बेदारी से मिलवाते हैं तुम्हें
तुम भी रख लेना जो ख़ूबसूरत लगी

ज़िंदा रहेंगे सदियों अलफ़ाज़ मेरे
ज़र्रे ज़र्रे में है मेरी क़यामत लगी

तबाहियों का शौक़ है ज़माने को
उम्र से ज़यादा नज़अ में ज़ीनत लगी

बड़े इमामबाड़े से नीचे उतरे तो वो मिल जायेंगे
क्या ख़ूब रक़ीबों से इस दफ़ा शर्त लगी

Sunday, February 2, 2014

रख ली

कुछ इस तरह हमने हालात से यारी रख ली
उधारी कर ली किराने की दुकान से
सर के बाल जाने लगे तो दाढ़ी रख ली

देखा तो होगा उसने मुड़ के इक दफ़ा क्या पता
हमने तो अपनी ऐनक उतारी, रख ली

हर मर्ज़ की दवा हुआ करती है आजकल
सबसे छुपाके मगर हमने एक बीमारी रख ली

क्या मसर्रत का सौदा अदा किया ज़माने को
सामान तमाम चुका कर, ख़ाली अलमारी रख ली

फ़र्क़ आता गया तुमसे हमारे वजूद में
तुम्हें सौंप कर उम्र तुम्हारी रख ली

ये चेहरे की रौनक क्यूँ मायूस है
ये किस ग़म से तुमने यारी रख ली

 बाज़ी बाज़ी में फ़र्क़ होता है
जितनी भी हमने हारी रख ली

क्यूँ आईना दिखाते है इक दूसरे को हम
कब किसने किसकी शक्ल उतारी रख ली

तेरे नाम की लक़ीर तो होगी इस हाथ में
क्यूँ हथेली पर हमने दुनियादारी रख ली

इश्क़ की मारी रही दर-ब-दर
पीरों ने क़िस्मत की मारी रख ली

चाँद अकेला कर गए तुम
मेरी रातें सितारी रख ली

 ये तबाह रातें न-ख़ुश रहती हैं मुझसे
जितनी तुमने संवारी, तुमने रख ली













Saturday, January 4, 2014

क्या ख़ाक़ इश्क़ हुआ

मीन मेक में लुत्फ़ को ही इश्क़ कहते हैं
मेरे हर ऐब पे ग़ुरूर न हुआ उसे तो
क्या ख़ाक़ इश्क़ हुआ

कौन  कहता है बेख़ुदी रहती है इश्क़ में
ख़ुदग़र्ज़ी न हुई तो
क्या ख़ाक़ इश्क़ हुआ

शायर तो बेवक़ूफ़ हुए जितने हुए
इश्क़ जैसी बला में भी ज़ौक़ लिया
बेचैन औ बेसुकूं रहने में कैसा लुत्फ़
दिल तुड़वाया
साला शायरी को धंधा बना लिया
जो दिल तोड़े, उसका सर न फोड़ा तो
क्या ख़ाक़ इश्क़ हुआ

सवाल उठाना इलज़ाम लगाना
आशिक़ों ने साला पेशा बना लिया
यकीं करने के लिए जिग़र चाहिए
जो आशिक़ हाथ में लेकर चलता है
जो यकीं न हुआ उसे तो
क्या ख़ाक़ इश्क़ हुआ

जो रंज दिल में न रखे
वो आशिक़ नहीं
जो आसानी से माफ़ करे
वो आशिक़ नहीं
जो ज़ख्म न दे 
जो बुरा नहीं
 जो खुदगर्ज़ नहीं
जो दर्द न पाले
जो अकेला न रह सके
वो आशिक़ नहीं

हक़ दिया जो उसे ज़ख्म लगाने का
पर ज़ख्म लगाए तो हाथ तोड़ दो
जो मसर्रत के बजाय
ग़म का हक़ अदा हुआ तो
क्या ख़ाक़ इश्क़ हुआ

जो तबाह हो
वो आशिक़ नहीं
जो तबाह न कर सके
वो आशिक़ नहीं
ख़ुद को भुला के इश्क़ नहीं होता
उसे इश्क़ तुम्हारी ख़ुदी से था
इश्क़ से दुनिया जीत के दिखाओ
साली दुनिया छोड़ ही दी तो
क्या ख़ाक़ इश्क़ हुआ

जो ग़लत हो उसे सज़ा मिले
जो ग़लत भी सही लगे तो
क्या ख़ाक़ इश्क़ हुआ

अबे इश्क़ की रवानी से
खून गरम रहता है
साला जैसे High BP हो
काट दो तो ज़र्र्र से बहता है
ठन्डे बन कर कह दिया - "कोई बात नहीं" तो
क्या ख़ाक़ इश्क़ हुआ

जुनूँ के तूफाँ ने हिलाया उनको
"सत्य" कि आंधी ने नहीं 
भगत सिंह ने किया इश्क़
गांधी ने नहीं

लिख लिख के वीर रस में
कवियों ने हमें कमज़ोर बना दिया
जाँ देने को कमज़ोरी नहीं, जज़बा बता दिया
जान लो तो आशिक़ बनो
सारा गुरूर छोड़ के सर झुका दिया तो
क्या ख़ाक़ इश्क़ हुआ

क्या इश्क़ मिलाएगा ख़ाक़ में मुझे
मैं भी आशिक़ नहीं जो न कह सकूँ
के लो ख़ाक़ इश्क़ हुआ

Friday, January 3, 2014

ख़ाक़ हो जायेंगे हम तुमको ख़बर होने तक

तक़ाज़े के तराज़ू में तोला हर दफ़ा इसको
इश्क़ को इश्क़ न कहा, गुनाह किया
इस दफ़ा
छीना ये हक़ भी तुमसे हमेशा के लिए
बात इतनी थी के इश्क़ किया हमने
तुम ले आये इसे क़हर होने तक

 

Tuesday, December 31, 2013

ranjish hi sahi

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

हर राह जिस से हम साथ गुज़रे कभी
उन गलियों से मुझे घर छोड़ के जाने के लिए आ


हर शाम शमा जलाता हूँ अपनी मज़ार पे मैं
आ फिर तू किसी ग़ैर को जलाने के लिए आ


Sunday, December 29, 2013

नुख्सान

इस इश्क़ - बाज़ारी में फ़क़ीर
कभी तो नुख्सान होना ही था

"ये शायरों की तरह पहेलियाँ मत बुझाओ यार"
"सीधा बताओ तो ऐसा क्या नुख्सान हो गया"

अरे कुछ नहीं
पहली दफ़ा ग्राहकी की हो जैसे
इस उम्र में भी बचकाना हरक़त कर दी
जो दिया उसने
बस झोले में डाला और चले आये
अबे क्या छूट गया वो तो देख लेते
हर बार कटा के चले आते हैं
अब चैन-ओ-सुकूँ जो गया
सो गया
निक्कम्मे हम दिल के मारे हम
ये सौदा उस पर आसान होना ही था

बहुत समझा के निकले थे ख़ुद को
बेटा सौदेबाज़ी है
जज़्बात की तुनतुनी न बजाने लगना
लो बज गयी न तुनतुनी
घर पहुंचे तो देखा
हर पल का इंतज़ार साले ने लिफ़ाफ़े में डाल कर दे दिया
अबे जब इश्क़ ज़िन्दगी बदलेगा
साथ मौत का सामान होना ही था

चलो कोई नहीं
लिफ़ाफ़ा सम्भालो।  मेज़ पर रखो।
पैर पसारो और हाथ सर के पीछे चढ़ा दो
निकालो Diary
अब पढ़ो शायरी
तुम साले अब लिखो शायरी
आशिक़ बनने का शौक़ है न बे
तो कहीं न कहीं
शायरी का अरमान होना ही था।

क्या समझे?
ख़ैर छोड़ो
सब समझ के हमने क्या उखाड़ लिया ?
अब भी खुद को नसीहत ही देते हैं
जीता वो करे, जो सब कुछ हार सके
इश्क़ वो करे , जो मन को मार सके
इश्क़ सा सुकूँ  न कुछ में
दुनिया को परेशान होना ही था।

Monday, August 26, 2013

गोटे काटो

एक क़त्ल का हक़ तो बनता है
जैसी अब Situation है।

साली शुरुआत ही ऐसी हुई थी

दुर्योधन ने जांघ पर, बैठने को जब कहा था
ज़रा झटके से जाँघों के बीच
बैठ जाती जो  द्रौपदी
क्या महाभारत होती
शरीर की सबसे नाज़ुक हड्डी
टूट के हाथ में होती।

कृष्ण ने तो उल्टा मज़ा बढ़ा दिया
क्या घंटा जांघ पे बैठने से बचा लिया?

तभी बात सुलट जाती
जब उठा ले गया था रावण
साला एक लात नाभि के 4 inch नीचे
ज़रा ज़ोर से मार देती मय्या सीता
ऐसी मय्या होती उसकी
निकालने के डर से साला
कभी पानी न पीता।

व्यास और वाल्मीकि को ये मंज़ूर नहीं था शायद
लगता है दोनों को गोटों पर घमंड था।
साला दोनों के पास एक ल*& था।
 अपने हिस्से में सुख
औरत को दर्द ही रखता है
क्या करें साला अपने देश में
औरत की कहानी मर्द ही लिखता है

कहने को लाखों हैं देवियाँ
पर कहने में ये क्यूँ होता है
की भगवान् बनाता है।
किसने लिंग देखा है उसका ?

अगर अलग line होती है औरतों की
तो एक क़त्ल का हक़ तो बनता है
Womens' Quota अगर मिलता है उनको
तो एक क़त्ल का  हक़ तो बनता है

जैसी अब Situation है भाई
राह चलते गोटे काटो
Comment मारे तो गोटे काटो
सीटी मारे तो काटो गोटे
नज़र उठाये तो गोटे काटो
जमा कर लो सारे तुम
एक एक bag भर के गोटे बाँट दो
हर सरकारी Office में
हर Police Station में
हर राखी पे येही बांधो तुम
जहाँ लगने चाहिए थे
ये वहीँ नहीं हैं

अब एक ही नारा लगाओ नारी
भारतीय नारी! सबकी मारी।

Monday, August 12, 2013

नाम न पूछो अब मेरा, मज़हब मेरा इश्क़
काम न पूछो अब मेरा, मतलब मेरा इश्क़

Monday, June 24, 2013

अण्डों का Rack

आज Fridge के, अण्डों के rack में नीम्बू पड़े थे

फिर?

 हमने कहीं न कहीं
यकीन भर रखा है
किसी इंसान में, किसी भगवान् में
किसी रिश्ते में, किसी फ़रिश्ते में
इस यकीन के क्या मायने हैं ?
साला इसी ने डर भर रखा है

अब बात चली है तो बिल फाड़ ही देते हैं
इस डर को यकीन की आड़ ही कहते हैं
पर डर किसी रिश्ते के टूटने का नहीं
किसी फ़रिश्ते के रूठने का नहीं
डर है दर्द से
अपने दर्द से

ये बात भी कोई नयी तो नहीं
जो सब कह चुके वही कही
फिर भी शायद किसी ने सुनी न हो
या तो यूँ कह लो
ब्रह्मा ने दुनिया रची ही न हो
घोर पाप

कुछ लिखा था तो शिर्डी ले गया
साईं चरण लगाने
सब बोले अब तो निकल पड़ेगी
फिर सार कुछ बदल गया
रचना  में प्रलय आ गयी जैसे
फिर भी
सब बोले अब तो निकल पड़ेगी
सब साईं ने बदल दिया
सब साईं ने बदल दिया
संगीन है। यकीन है।

अरे ये क्या पाप हो गया मुझसे
भरोसे  को यकीन कह गया
इस देश में शब्दों से अ ... मतलब लफ़्ज़ों से
मज़हब जांच लेते हैं लोग
महीन हैं। यकीन है।

अब जांचते हैं तो जांचा करें
यकीन से कई शब्द तुक खाते हैं
अब कविता में भरोसा लिखूं तो?
खैर इतने में मैंने खुद को
एक गर्म समोसा परोसा, और सोचा
के छोडो भरोसा, यकीन ही बेहतर है


हाँ तो हुआ ये
कि आज Fridge के अण्डों के rack में नीम्बू पड़े थे
थोड़ी मुश्किल हुई
पर मैंने नीम्बू उठाये और rack में अंडे रख दिए
भई जगह तो अण्डों की थी न
वहां  नीम्बू क्यूँ बैठेंगे ?
पर पहले तो हमेशा नीम्बू ही रहते थे
और अगर मॉस मच्छी का घर न होता तो ?
तो नीम्बू रहते। और क्या ?
पर अब अंडे हैं
छोडो न
कौन सा मंदिर गिरा के मस्जिद बनाया है



Monday, December 31, 2012

तो क्या

यूँ आजकल कुछ कम हो गया है लिखना
ग़म-ए-दिल बाज़ार में उछालें भी तो क्या

उन्हें शौक़ है हमारे इश्क़ को शौक़ कहने का
उनका शौक़ हम उठालें भी तो क्या

जज़्बात कोई जज़्बात में नहीं तोलता
महसूस की कीमत हम लगा लें भी तो क्या

एहद-ए-वफ़ा हमने निभाई है पूरी
वो हमसे अदावत निभालें भी तो क्या

शिकवा तो ग़ैरों से होता है
वो इतना कभी अपना बना लें भी तो क्या

उनका दर ही कआबा-काशी है
निकालें, हटालें बुलालें भी तो क्या

न मलाल, न सवाल न हमें हसरत ही कोई
इस इश्क का मखौल वो उड़ालें भी तो क्या 

Sunday, December 30, 2012

ग़म नहीं

अश्क़ ज़रिया हैं ग़म नहीं

इश्क़ तो ले आया दर पे तेरे
पर जिसने रोका वो भी एहम नहीं

मर्ज़ होता तो जाँ लेता
इश्क़  है, इसका  कोई मरहम नहीं

रात का सुकून वेह्शत लगता है
जैसे रात में भरते  हम दम नहीं

अश्क़ आशिक़ी में बहाए इतने
के अब तुम नहीं या हम नहीं

दर्द से क्या बचेगा आशिक़
जो दर्द न दे वो सनम नहीं

अश्क़ ज़रिया हैं ग़म नहीं
एहसास है, कलम नहीं
बह निकलें तो दरिया
जो रुक जाएँ आँखों में
तो तूफां से कम नहीं

इस बार न बहें, रुके रहें
साहिलों के सर झुके रहें
नज़र से बाँध नज़र ये कह सकूँ
के दर्द तो है पर कोई ग़म नही

Sunday, November 11, 2012

दोपहर

एक कमरा... मखमली दोपहर में ले लूं

इत्मिनान से... आराम से
छनती धूप में
लेट कर उसे याद करूँ 


सर्दी इतनी हो के धूप अच्छी लगे

न जाने इन दोपहरों में क्या है
गुनगुनी हवा और धूप की टुकड़ियों में क्या है
अटकती हैं मन में
रूखी इतनी के खिंचती हैं
बाक़ी पहरों में जो खला, खलता है
उसी खले में इत्मिनान से... आराम से
लेट कर उसे याद करूँ

शेहर पराया हो तो और अच्छा
मैं अजनबी रहूँ
अलग रहूँ, तन्हा रहूँ
थोड़ी सी अल्खत रहे
इक आधा सा डर रहे
शाम होने से पहले का वो आधा घंटा
धूप  के  ठन्डे पड़ने से पहले का
इतना लम्बा चले, इतना लम्बा चले
और मैं लेट कर उसे याद करूँ

लगातार चलने वाले ग़म के बाद का ग़म
नया नया ताज़ा ताज़ा
मज़ा देता रहे
इस मखमली दोपहर में
लेटूं और आँख लगे
आँख लगे, न आँख खुले

Monday, September 10, 2012

एक ऐब न मुझ में

कैसा मैं इंसान बना
एक ऐब न मुझ में

सब सच कहता हूँ
बच बच रहता हूँ
छल से मैं
अपने हिसाब से सच मरोड़ के
कुछ भी कह जाना झूठ थोड़े ही है
अरे ज़रा से मनघडंत है, झूट थोड़े ही है

सच न कहना, झूठ थोड़े ही है

और हाँ नशा भी नहीं करता मैं

खुद से इतना खुश हूँ तो
क्यूँ भुलाऊं खुद को मैं
क्यूँ डूबूँ  नशे में 
क्यूँ धुंधला देखूं मैं
मुझे नशा है खुद का
ये ऐब तो नहीं
खुद से तंग नहीं आता मैं
ये ऐब तो नहीं
खुद से बेहतर दुनिया में कोई भी साथ कहाँ
जी नशा है लहू में, वो मदिरा में बात कहाँ

जो मुझको दर्द करे
मैं उसको दर्द करूँ
जो मुझसे प्रेम करे
मैं उसको दर्द करूँ
फिर रोऊँ खुद पर मैं
ये ऐब तो नहीं
बचपन से इस जग ने
येही पाठ सिखलाया है 
तो मुझे किसी से मोह नहीं
मोह तो यूँ भी माया है
देखा - दो पल में कैसे
जग को दोष दे दिया
इसके नाम ही सारा
आक्रोश दे दिया
ये ऐब तो नहीं

मुझे किसी पे क्रोध नहीं

संत हूँ
भौहें नहीं चढ़ाता मैं
चुपचाप पी जाता हूँ विष सारा
मान गए न?
तो ये झूठ न रहा
तो मैंने झूठ न कहा
देखा
एक ऐब न मुझ में

बात कटु न कहता मैं
पर सच तो कटु ही होता है
तो सच कभी न कहता मैं
ये ऐब तो नहीं

ठेस कोई न पहुंचाई मैंने
कभी किसी को भूले से
पहुंचाई होती तो मुझे पता होता
है न? नहीं पता तो नहीं पहुंचाई होगी
एक ऐब न मुझ में

माफ़ आसानी से कर देता हूँ
एक ग़लती तो भगवान् भी माफ़ करते हैं न

इतना अच्छा हूँ मैं तो
सारे लगते हैं बुरे मुझे
ये ऐब तो नहीं

भला जो देखन मैं चला
भला न मिलेय कोए
जो मन खोजा आपना
मुझसे भला न कोए






Wednesday, August 15, 2012

हम आज़ाद है

सालों पहले एक अधमरा दुबला सा आदमी
अगस्त की आधी रात, हांफता हुआ आया और बोला
"हम आज़ाद है"
मुट्ठी भर मुस्कुराते चेहरों में एक बच्चा भी था
येही कोई छे एक साल का
वो बोल पड़ा
"अब करना क्या है"
तो दुबला सा आदमी दो पल को चुप रहा
फिर बोला - "ये अब तुम जानो"

"अम्मा कल स्कूल में १५ अगस्त मना रहे हैं,
मुझे तिरंगे वाली कमीज़ पहना दो"
"नहीं बेटा - वो हम नहीं कर सकते, गैर कानूनी है"

"यार नौकरी तो काबलियत पे मिलती है न
या local भाषी होने से?"

"हर form में मज़हब का column तो होना चाहिए भाई
पता कैसा चलेगा वरना?"

"२८ साल की लड़की की शादी नहीं हुई तो ठीक नहीं है न? बेचारी "

"५ साल हो गए शादी को???? अब तक बच्चे नहीं हुए???"

"देख बेटा - अब तो तुझे कमाना चाहिए"

"कोई बीमारी है आपको? Heart की? Diabetes?
फिर Medical Insurance नही मिल सकता, sorry"

"पहले Learners' license फिर पक्का वाला"
"पर मुझे गाडी चलानी आती है। License खो गया था बस"

"राज्यों में बांटना चाहिए न देश को। नहीं तो पता कैसे चलेगा
मराठी कौन, बंगाली कौन, गुजराती कौन।

"नाम या उपनाम से मज़हब, मात्रभाषा, जात का पता तो लगना चाहिए भाई
पता तो चले के हम जिस से बात कर रहे हैं वो कहाँ का है"

"देश छोड़ कर जाना है तो सरकार से पूछना पड़ेगा न...
कल को वहां किसी को मार डाला तो?"

"राष्ट्रगान पे खड़े नहीं हुए तो उसकी इज्जत नहीं है समझो"

"लिखो, जो लिखना है लिखो
पर रामायण, महाभारत, गीता, चाचा चौधरी, पिंकी, बिल्लू
वगेरह पर सवाल न उठाना। ये हमारी संस्कृति है न"

"सुबह सुबह नहा लो"
"कितना भी कमाओ, savings ज़रूर करो"
"छोटे भाई/बहन की शादी का खर्चा तो करना ही पड़ेगा"
"कमाओ। returns भरो"
"Contract के हर पन्ने पे sign करो। Same sign"
"खिड़की तोड़ कर Balcony मत बनाओ। बिल्डिंग गिर सकती है।

"गाडी का Insurance तो हो जाएगा, पर plastic parts का नहीं है।
मतलब tyre, bumper, mirrors, handles, wheel caps, seats, dashboard, cladding...
बस इनका नहीं होगा"

"अरे लड़की भेज रहे हैं... उसके कपडे, बिस्तर, ज़ेवर सब साथ में भेजेंगे लड़कीवाले"
"जलो या दफ़न हो जाओ"
"हमने घिसा तुम भी घिसो"
"छोटे हो - सवाल मत पूछो"
"जो बड़ा वो ज्यादा समझदार। बस । बोल दिया न"
"शादी से पहले प्यार मत करो"
"शादी के बाद प्यार मत करो"
"प्यार किया? शादी मत करो"
"जितना कहा जाए उतना करो"
"१८ साल के बाद ही वोट करो"

हम आज़ाद है
1832 में बने british rule के तहत
हम आज़ाद है
1947 में हुई एक छोटी से amendment के तहत
हम आज़ाद हैं
चलो अब जहाँ भी हो
तिरंगे को सलाम करो ।